भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शव-3 / समीर बरन नन्दी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=समीर बरन नन्दी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> बचपन की छाया क…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=समीर बरन नन्दी
 
|रचनाकार=समीर बरन नन्दी

17:38, 12 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

बचपन की छाया की तरह
पड़ा रहता है शव
पहले प्यार की तरह
जागा रहता है शव ।

जैसे गुफ़ा में रहता है अँधेरा
चित्र-लिपि-सा हाड़ पर रहता है उकेरा
जैसे आदर्श से ढका रहता है
नेता का चेहरा ।

दुधमुँहे बच्चे में जैसे
रिश्तो का बीज छुपा होता है
शव के लिए देह को
बचा कर रखना होता है ।