भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बाढ़ १९७५ / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
बादल बरस रहे बचकाने
 
बादल बरस रहे बचकाने
 
आँख मूँद कर दिए जा रहे
 
आँख मूँद कर दिए जा रहे
              पर्वत को सिरहाने
+
            पर्वत को सिरहाने
 
बादल बरस रहे बचकाने
 
बादल बरस रहे बचकाने
  
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
करता-फिरता है मनमानी
 
करता-फिरता है मनमानी
 
बीन-बीन कर गाँव गिराए
 
बीन-बीन कर गाँव गिराए
              छोड़े राजघराने  
+
              छोड़े राजघराने  
  
 
सारे नियम किए मटमैले
 
सारे नियम किए मटमैले

12:00, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण

बादल बरस रहे बचकाने
आँख मूँद कर दिए जा रहे
            पर्वत को सिरहाने
बादल बरस रहे बचकाने

यह लम्पट आवारा पानी
करता-फिरता है मनमानी
बीन-बीन कर गाँव गिराए
              छोड़े राजघराने

सारे नियम किए मटमैले
बिल से निकले साँप विषैले
ऊपर मौन पखेरू, नीचे
              ठंडे हैं अगिहाने<ref>देशज शब्द है, जिसका मतलब है चूल्हा या अग्निस्थान</ref>

बादल बरस रहे बचकाने

शब्दार्थ
<references/>