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दफ़्तर के बाद-३ / रमेश रंजक

3 bytes added, 06:06, 19 दिसम्बर 2011
<poem>
टुकड़े-टुकड़े,
-आ कर जुड़े
आदमक़द हो गए
फिर हम
छोड़ी कुर्सी
मृत दिन की चिता जला
दृष्टि घुमायीघुमाई, तोड़ी
मातमपुर्सी
मुँस मुँह से तरीख़ तारीख़ नोंच कर
कहकहे उड़े
आदमक़द हो गए
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