भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिन अधमरा देखने / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=रमेश रंजक | + | |रचनाकार=रमेश रंजक |
+ | |संग्रह=हरापन नहीं टूटेगा / रमेश रंजक | ||
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} |
11:38, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण
दिन अधमरा देखने
कितनी भीड़ उतर आई
मुश्किल से साँवली सड़क की
देह नज़र आई ।
कल पर काम धकेल आज की
चिन्ता मुक्त हुई
खुली हवाओं ने सँवार दी
तबियत छुइ-मुई
दिन की बुझी शिराओं में
एक और उमर आई ।
फूट पड़े कहकहे,
चुटकुले बिखरे घुँघराले
पाँव, पंख हो गए
थकन की ज़ंजीरों वाले
गंध पसीने की पथ भर
बतियाती घर आई