भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छाँह-द्वीप तुम ! / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=हरापन नहीं टूटेग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
  
 
जब-जब पनडुब्बी भर
 
जब-जब पनडुब्बी भर
                  डूबा है
+
                    डूबा है
 
                 अनाथ मन     
 
                 अनाथ मन     
 
बैठ गई है पगडंडी पर
 
बैठ गई है पगडंडी पर
                    देह की थकन
+
              देह की थकन
 
तब-तब मेरे वर्तमान को
 
तब-तब मेरे वर्तमान को
                      सुधा पिलाकर
+
              सुधा पिलाकर
 
सिद्ध कर गए हो—
 
सिद्ध कर गए हो—
 
कोरे इतिहास नहीं हो     
 
कोरे इतिहास नहीं हो     
 
</poem>
 
</poem>

12:16, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

थल के छाँह-द्वीप तुम !
पल के सिन्धु-सेतु हो
जल-थल के संबल हो,
लेकिन पास नहीं हो

जब-जब पनडुब्बी भर
                    डूबा है
                अनाथ मन
बैठ गई है पगडंडी पर
              देह की थकन
तब-तब मेरे वर्तमान को
              सुधा पिलाकर
सिद्ध कर गए हो—
कोरे इतिहास नहीं हो