"अजगरी संत्रास / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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अरे, मन ! | अरे, मन ! | ||
साँस धीमे ले बढ़ेगी और जकड़न | साँस धीमे ले बढ़ेगी और जकड़न | ||
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सामने है व्यंग्य, पीछे | सामने है व्यंग्य, पीछे | ||
विष-बुझा परिहास | विष-बुझा परिहास | ||
आदमखोर | आदमखोर | ||
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शब्दहीन वेदना को | शब्दहीन वेदना को | ||
बींधता सायास | बींधता सायास | ||
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अचेतन | अचेतन | ||
धमनियों में तैर जाता बाँस का बन । | धमनियों में तैर जाता बाँस का बन । | ||
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टीसते हैं खिड़कियों के | टीसते हैं खिड़कियों के | ||
प्रश्-सूचक चिन्ह | प्रश्-सूचक चिन्ह | ||
सारी रात | सारी रात | ||
+ | |||
टूटता अपनत्व कुंठित | टूटता अपनत्व कुंठित | ||
व्योम से विच्छिन्न | व्योम से विच्छिन्न | ||
− | + | उल्कापात | |
− | + | थक गई है नब्ज जब संवेदना की | |
− | + | क्या करे कमज़ोर संजीवन | |
− | + | निवेदन | |
− | ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन। | + | ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन। |
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03:11, 8 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
तन गई हैं इस क़दर युग मान्यताएँ
घुट गया है गीत का जीवन
अरे, मन !
साँस धीमे ले बढ़ेगी और जकड़न
सामने है व्यंग्य, पीछे
विष-बुझा परिहास
आदमखोर
शब्दहीन वेदना को
बींधता सायास
दुहरा शोर
खींचता है अजगरी संत्रास भूखा
मुट्ठियों में बंद खालीपन
अचेतन
धमनियों में तैर जाता बाँस का बन ।
टीसते हैं खिड़कियों के
प्रश्-सूचक चिन्ह
सारी रात
टूटता अपनत्व कुंठित
व्योम से विच्छिन्न
उल्कापात
थक गई है नब्ज जब संवेदना की
क्या करे कमज़ोर संजीवन
निवेदन
ओढ़ धूमिल धूप पीता अनमनापन।