भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो भी क्या दिन थे हर इक बात पे हैराँ होना/ मनु भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Manubhardwaj (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> व...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:45, 24 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
वो भी क्या दिन थे हर इक बात पे हैराँ होना
ये भी क्या दिन हैं हर इक वक़्त गुरेज़ाँ होना
हर ग़लत बात पे मैं चुप हूँ मगर सुन लीजे
ग़ैर मुमकिन है हरेक बार मेरी हाँ होना
तूने लफ़्ज़ों में भी न मुझको जगह दी हमदम
मैंने चाहा था तेरी ज़ीस्त का उन्वाँ होना
बावज़ू होके नमाज़ें तो पढ़ें आप मगर
ये ज़रूरी है रहे दिल में भी ईमाँ होना
मर गया मैं तो उसी रोज़ जब ये दिल टूटा
अब तो बाक़ी है फ़क़त मौत का ऐलाँ होना
अपने हिस्से के निवाले भी लुटा देती है
कितना दुश्वार है औरत के लिए माँ होना