"टूटी पायल से बिखरे मेरे छन्द-बन्ध / जगन्नाथ त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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आयीं मेरे जीवन-गृह में | आयीं मेरे जीवन-गृह में | ||
आलोक-भविष्यत् बनकर।। | आलोक-भविष्यत् बनकर।। | ||
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मानवी-सृष्टि करुणा-प्रधान | मानवी-सृष्टि करुणा-प्रधान | ||
जग का स्रष्टा करुणामय है | जग का स्रष्टा करुणामय है | ||
करुणा भावों में श्रेष्ठ भाव | करुणा भावों में श्रेष्ठ भाव | ||
कवि-हृदय स्वयं करुणालय है।। | कवि-हृदय स्वयं करुणालय है।। | ||
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ओ दीन-कुटी की आवासिनि ! | ओ दीन-कुटी की आवासिनि ! | ||
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संतों की सुधामयी बाणी | संतों की सुधामयी बाणी | ||
कातर पुकार चिर बिरही की।। | कातर पुकार चिर बिरही की।। | ||
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ओ क्षमा-दया की मलय-निलय | ओ क्षमा-दया की मलय-निलय | ||
छायावादी कवि की आश्रय, | छायावादी कवि की आश्रय, | ||
उद्भ्रान्त-क्लान्त पथिकों की | उद्भ्रान्त-क्लान्त पथिकों की | ||
हे, शीतल सुखमय विश्रामालय।। | हे, शीतल सुखमय विश्रामालय।। | ||
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भोले स्वरूप में अमिय-सृष्टि | भोले स्वरूप में अमिय-सृष्टि | ||
कोमल वाणी में सुमन-वृष्टि | कोमल वाणी में सुमन-वृष्टि | ||
नख से शिख ‘ करुण रसः एको ’ | नख से शिख ‘ करुण रसः एको ’ | ||
गम्भीर दूर-दर्शिणी दृष्टि!! | गम्भीर दूर-दर्शिणी दृष्टि!! | ||
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− | + | साहचर्य लाभ तेरा पाकर | |
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+ | मैं तुझमें, तू मुझमें अनन्य।। | ||
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इस पीत-पराग ‘जलज‘ में | इस पीत-पराग ‘जलज‘ में | ||
मृदु मकरन्दोत्सव बनकर | मृदु मकरन्दोत्सव बनकर | ||
कर दिया सुगंधित जीवन | कर दिया सुगंधित जीवन | ||
सुषमा-सौरभ विखराकर।। | सुषमा-सौरभ विखराकर।। | ||
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− | + | विलसति पुरतः हूँ , अबले !! | |
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− | + | मघुऋतु की मदिर माघुरी-सी | |
+ | तुम महक उठो मन-मन में।। | ||
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गूँजे करुणा॰जलि मेरी | गूँजे करुणा॰जलि मेरी | ||
करुणा के करुणा॰चल में | करुणा के करुणा॰चल में |
15:33, 3 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
करुणे !
तम घिरी अमावश्या में
तुम दीप महोत्सव बनकर
आयीं मेरे जीवन-गृह में
आलोक-भविष्यत् बनकर।।
करुणाकर! मैं कृतकृत्य हुआ
तेरी करुणा को पाकर
कामना यही है करुणा का
विस्तार अमित हो भूतल पर।।
मानवी-सृष्टि करुणा-प्रधान
जग का स्रष्टा करुणामय है
करुणा भावों में श्रेष्ठ भाव
कवि-हृदय स्वयं करुणालय है।।
ओ दीन-कुटी की आवासिनि !
तुम तरल तरलिमा लोचन की
संतों की सुधामयी बाणी
कातर पुकार चिर बिरही की।।
ओ विप्र-हृदय की साम्राज्ञी!
मेरे अन्वेषण की रानी
हो तुम्ही कुमारी मानवता
अन्तस्सौन्दर्यमयी रमणी।।
ओ क्षमा-दया की मलय-निलय
छायावादी कवि की आश्रय,
उद्भ्रान्त-क्लान्त पथिकों की
हे, शीतल सुखमय विश्रामालय।।
ओ जग की धातृ-विघातृ-मातृ !
तुम रूप मानवी धारण कर
बस जाओ मेरे तन-मन
में, लावण्यमयी छवि बनकर।।
भोले स्वरूप में अमिय-सृष्टि
कोमल वाणी में सुमन-वृष्टि
नख से शिख ‘ करुण रसः एको ’
गम्भीर दूर-दर्शिणी दृष्टि!!
साहचर्य लाभ तेरा पाकर
मैं स्वयं हो गया धन्य-धन्य।
अद्वैत-भाव से प्रेम-लीन
मैं तुझमें, तू मुझमें अनन्य।।
इस पीत-पराग ‘जलज‘ में
मृदु मकरन्दोत्सव बनकर
कर दिया सुगंधित जीवन
सुषमा-सौरभ विखराकर।।
मैं ‘ शुष्को वृक्षः तिष्ठति
अग्रे ’ था इसके पहले
मिलते ही ‘नीरस तरुवर
विलसति पुरतः हूँ , अबले !!
तरु-शिखरों सी उच्चाकाँक्षाएँ
लेकर इस जीवन में
मघुऋतु की मदिर माघुरी-सी
तुम महक उठो मन-मन में।।
गूँजे करुणा॰जलि मेरी
करुणा के करुणा॰चल में
लहराये प्यार हमारा
करुणा के नित दृग-जल में।।