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"किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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('तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए ये दिल कहता ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
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10:42, 7 फ़रवरी 2012 का अवतरण

तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .


तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए .


अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .


जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए .


ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .


मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .


बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .


बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .


शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए .