"किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
('तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए ये दिल कहता ह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
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ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए . | ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए . | ||
− | तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी | + | तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी |
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तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए . | तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए . | ||
− | अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं | + | अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं |
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गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए . | गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए . | ||
जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा | जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा | ||
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वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए . | वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए . | ||
ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ | ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ | ||
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किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए . | किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए . | ||
मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता | मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता | ||
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शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए . | शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए . | ||
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में | बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में | ||
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किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए . | किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए . | ||
बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना | बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना | ||
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किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए . | किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए . | ||
− | शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों | + | शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों |
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अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए . | अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए . |
10:43, 7 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए
ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .
तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी
तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए .
अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .
जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा
वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए .
ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .
मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .
बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .
शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों
अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए .