भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चुका भी हूँ मैं नहीं / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
 
|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
चुका भी हूँ मैं नहीं
 
चुका भी हूँ मैं नहीं
 
 
कहाँ किया मैनें प्रेम
 
कहाँ किया मैनें प्रेम
 
 
अभी ।
 
अभी ।
  
 
जब करूँगा प्रेम
 
जब करूँगा प्रेम
 
 
पिघल उठेंगे
 
पिघल उठेंगे
 
 
युगों के भूधर
 
युगों के भूधर
 
 
उफन उठेंगे
 
उफन उठेंगे
 
 
सात सागर ।
 
सात सागर ।
  
 
किंतु मैं हूँ मौन आज
 
किंतु मैं हूँ मौन आज
 
 
कहाँ सजे मैनें साज
 
कहाँ सजे मैनें साज
 
 
अभी ।
 
अभी ।
  
 
सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
 
सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
 
+
तत्त्व निकलेंगे
तत्व निकलेंगे
+
 
+
 
अमित विषमय
 
अमित विषमय
 
 
जब मथेगा प्रेम सागर
 
जब मथेगा प्रेम सागर
 
 
हृदय ।
 
हृदय ।
 
 
निकटतम सबकी
 
निकटतम सबकी
 
 
अपर शौर्यों की
 
अपर शौर्यों की
 
 
तुम
 
तुम
 
 
तब बनोगी एक
 
तब बनोगी एक
 
 
गहन मायामय
 
गहन मायामय
 
 
प्राप्त सुख
 
प्राप्त सुख
 
 
तुम बनोगी तब
 
तुम बनोगी तब
 
 
प्राप्य जय !
 
प्राप्य जय !
  
 
   
 
   
  
''( १९४१ में लिखित )
+
'''( १९४१ में लिखित )'''
 +
</poem>

22:08, 17 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

चुका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैनें प्रेम
अभी ।

जब करूँगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर ।

किंतु मैं हूँ मौन आज
कहाँ सजे मैनें साज
अभी ।

सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
तत्त्व निकलेंगे
अमित विषमय
जब मथेगा प्रेम सागर
हृदय ।
निकटतम सबकी
अपर शौर्यों की
तुम
तब बनोगी एक
गहन मायामय
प्राप्त सुख
तुम बनोगी तब
प्राप्य जय !

 

( १९४१ में लिखित )