भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रिमझिम के फूल झरे / सोम ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोम ठाकुर |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> रिमझिम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:58, 24 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

रिमझिम के फूल झरे रात से
बूँदों के गुच्छे मारे मेघा

कल तक देखे है हर खेत ने
अनभीगे वे दिन मन मारकर
बिन बात अम्मा भी खुश हुई
हल- बैलों की नज़र उतारकर
उमस --उमस उमर -क़ैद काटकर
जाने क्या सगुन विचारे मेघा

पहली बौछारों -भीगी धरा
दाह बुझा नदिया की देह का
घुल-घुलकर धार -धार नीर में
मुँह मोड़े खारापन रेह का
चमक उठी आकाशें जो स्वयं
बिजली के रूप संवारे मेघा

लहराई जल- झालर इस तरह
रात- रात झूलों के नाम है
घिरकर घहराई जो घन -घटा
लगता दिन -दुपहर ही शाम है

दिशा -दिशा झूमझूम -झूमझूम
सागर का क़र्ज़ उतारे मेघा

क्षितिजों तक इंद्र -धनु तना कभी
उभरे है कभी स्वर्ण चित्र सा
बार-बार किरण -घुले रंग में
महके कुछ मौसम के इत्र -सा
खोजे जाने किस को जन्म से
जाने क्या नाम पुकारे मेघा?
बूँदों के गुच्छे मारे मेघा