भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तालिब ए दीद हूँ चेहरा तो दिखा, देखूँ मैं / रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविंदर कुमार सोनी }} {{KKCatGhazal}} <poem> तालिब ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

15:33, 24 फ़रवरी 2012 का अवतरण

तालिब ए दीद हूँ चेहरा तो दिखा, देखूँ मैं
दरमियाँ परदा है क्या, परदा उठा देखूँ मैं
मेरी रूदाद पे उस शोख़ की आँखें पुरनम
कैस ओ फ़रहाद का अफ़साना सुना देखूँ मैं
आ कभी तू मिरे आँगन में दुल्हन बनकर आ
तेरे हाथों पे लगा रंग ए हिना देखूँ मैं
कोई आहट तो हो टूटे मिरे ज़िन्दां का सकूत
चुप रहूँ, पाँव की ज़न्जीर हिला देखूँ मैं
अपनी क़िस्मत के सितारे को कि बे नूर-सा है
तोड़ कर अर्श से धरती पे गिरा देखूँ मैं
आज गुलशन की हर इक शाख़ है फूलों से लदी
दिल ए पज़मुर्दा को भी हँसता हुआ देखूँ मैं
बे सतूँ पर कि किसी नज्द में क्या जाने रवि
मुझे मिल जाए कहाँ मेरा पता देखूँ मैं