भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जान ए अज़ीज़, रख्खियो न हम को नज़र से दूर / रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविंदर कुमार सोनी }} {{KKCatGhazal}} <poem> जान ए ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
जान ए अज़ीज़, रख्खियो न हम को नज़र से दूर  
 
जान ए अज़ीज़, रख्खियो न हम को नज़र से दूर  
 
है अपनी राह, जादा ए शाम ओ सहर से दूर
 
है अपनी राह, जादा ए शाम ओ सहर से दूर
 +
 
शाम ए फ़िराक़ आतिश ए ग़म क्या जलाएगी  
 
शाम ए फ़िराक़ आतिश ए ग़म क्या जलाएगी  
 
गिरती है बरक़ ए तूर भी हद ए नज़र से दूर  
 
गिरती है बरक़ ए तूर भी हद ए नज़र से दूर  
 +
 
ऐश ओ तरब का दौर है साक़ी पिला शराब  
 
ऐश ओ तरब का दौर है साक़ी पिला शराब  
 
मैं आ गया हूँ रक़स कुनाँ अपने घर से दूर  
 
मैं आ गया हूँ रक़स कुनाँ अपने घर से दूर  
 +
 
ऐ कजरवी ए वक़्त तू ही कर निशानदही  
 
ऐ कजरवी ए वक़्त तू ही कर निशानदही  
 
मेरी नज़र है जलवा ए शम्स ओ क़मर से दूर
 
मेरी नज़र है जलवा ए शम्स ओ क़मर से दूर
 
</poem>
 
</poem>

15:37, 25 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

जान ए अज़ीज़, रख्खियो न हम को नज़र से दूर
है अपनी राह, जादा ए शाम ओ सहर से दूर

शाम ए फ़िराक़ आतिश ए ग़म क्या जलाएगी
गिरती है बरक़ ए तूर भी हद ए नज़र से दूर

ऐश ओ तरब का दौर है साक़ी पिला शराब
मैं आ गया हूँ रक़स कुनाँ अपने घर से दूर

ऐ कजरवी ए वक़्त तू ही कर निशानदही
मेरी नज़र है जलवा ए शम्स ओ क़मर से दूर