"मुद्दा ए मुद्दई मतलब की बात / रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर
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अँधेरे के पस ए परदा उजाला खोजता क्यूँ है | अँधेरे के पस ए परदा उजाला खोजता क्यूँ है | ||
जो अन्धा हो गया वो दिन में सूरज ढूँढता क्यूँ है | जो अन्धा हो गया वो दिन में सूरज ढूँढता क्यूँ है | ||
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बताया तो था लैला ने मगर सहरा नहीं समझा | बताया तो था लैला ने मगर सहरा नहीं समझा | ||
कि मजनूँ रेतीले दर पर सर अपना फोड़ता क्यूँ है | कि मजनूँ रेतीले दर पर सर अपना फोड़ता क्यूँ है | ||
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ये रोज़ ओ शब की गरदिश ही अगर है मक़सद ए हस्ती | ये रोज़ ओ शब की गरदिश ही अगर है मक़सद ए हस्ती | ||
तो सू ए आसमाँ ऊँची नज़र से देखता क्यूँ है | तो सू ए आसमाँ ऊँची नज़र से देखता क्यूँ है | ||
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ये माना हिज्र का ग़म तुझ पे तारी है दिल ए नादाँ | ये माना हिज्र का ग़म तुझ पे तारी है दिल ए नादाँ | ||
जो आया है वो जाएगा तू नाहक़ सोचता क्यूँ है | जो आया है वो जाएगा तू नाहक़ सोचता क्यूँ है | ||
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सहर होने को है शायद, सितारे हो गए मद्धम | सहर होने को है शायद, सितारे हो गए मद्धम | ||
शब ए ग़म जा रही है तू अभी तक ऊँघता क्यूँ है | शब ए ग़म जा रही है तू अभी तक ऊँघता क्यूँ है | ||
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यक़ीनन कुछ सबब था, तेरी ज़न्जीरें नहीं टूटीं | यक़ीनन कुछ सबब था, तेरी ज़न्जीरें नहीं टूटीं | ||
मगर पा ए शिकस्ता राह से बन्धन तोड़ता क्यूँ है | मगर पा ए शिकस्ता राह से बन्धन तोड़ता क्यूँ है | ||
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ये दीवारें मिरे घर की खड़ी खामोश सुनती हैं | ये दीवारें मिरे घर की खड़ी खामोश सुनती हैं | ||
मेरे अन्दर छुपा जज़्बा अलम का बोलता क्यूँ है | मेरे अन्दर छुपा जज़्बा अलम का बोलता क्यूँ है | ||
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जो तूफ़ानी हवाओं के मुक़ाबिल हो नहीं सकता | जो तूफ़ानी हवाओं के मुक़ाबिल हो नहीं सकता | ||
चलो देखें समुन्दर से वो आख़िर खेलता क्यूँ है | चलो देखें समुन्दर से वो आख़िर खेलता क्यूँ है | ||
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16:01, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण
अँधेरे के पस ए परदा उजाला खोजता क्यूँ है
जो अन्धा हो गया वो दिन में सूरज ढूँढता क्यूँ है
बताया तो था लैला ने मगर सहरा नहीं समझा
कि मजनूँ रेतीले दर पर सर अपना फोड़ता क्यूँ है
ये रोज़ ओ शब की गरदिश ही अगर है मक़सद ए हस्ती
तो सू ए आसमाँ ऊँची नज़र से देखता क्यूँ है
ये माना हिज्र का ग़म तुझ पे तारी है दिल ए नादाँ
जो आया है वो जाएगा तू नाहक़ सोचता क्यूँ है
सहर होने को है शायद, सितारे हो गए मद्धम
शब ए ग़म जा रही है तू अभी तक ऊँघता क्यूँ है
यक़ीनन कुछ सबब था, तेरी ज़न्जीरें नहीं टूटीं
मगर पा ए शिकस्ता राह से बन्धन तोड़ता क्यूँ है
ये दीवारें मिरे घर की खड़ी खामोश सुनती हैं
मेरे अन्दर छुपा जज़्बा अलम का बोलता क्यूँ है
जो तूफ़ानी हवाओं के मुक़ाबिल हो नहीं सकता
चलो देखें समुन्दर से वो आख़िर खेलता क्यूँ है