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"हर चन्द चाहता हूँ कि उनका कहा करूँ / रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर

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हर चन्द चाहता हूँ कि उनका कहा करूँ
 
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लेकिन ये आरज़ू कि तमाशा किया करूँ
 
लेकिन ये आरज़ू कि तमाशा किया करूँ
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सूरज की रोशनी ने किया दिल को दाग़ दाग़
 
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ली है पनाह तीरगी ए शब में क्या करूँ
 
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हर अश्क ए ख़ून ए दिल के है जी में ये आजकल
 
हर अश्क ए ख़ून ए दिल के है जी में ये आजकल
 
ऐसा भी हो कि पलकों से उनकी बहा करूँ
 
ऐसा भी हो कि पलकों से उनकी बहा करूँ
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हो यूँ, कि दिन ढले कोई आकर मिरे क़रीब
 
हो यूँ, कि दिन ढले कोई आकर मिरे क़रीब
 
रूदाद मेरी मुझ से कहे, मैं सुना करूँ
 
रूदाद मेरी मुझ से कहे, मैं सुना करूँ
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लब पर शिकायत ए ग़म ए दौराँ न आ सकी
 
लब पर शिकायत ए ग़म ए दौराँ न आ सकी
 
मायूसियों ने शर्त लगाई थी, क्या करूँ
 
मायूसियों ने शर्त लगाई थी, क्या करूँ
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बे बाल ओ पर सही ये मगर बे अमल नहीं
 
बे बाल ओ पर सही ये मगर बे अमल नहीं
 
मुर्ग़ ए चमन को क़ैद ए क़फ़स से रिहा करूँ
 
मुर्ग़ ए चमन को क़ैद ए क़फ़स से रिहा करूँ
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उठ कर दर ए हबीब से दिल में है ये, रवि
 
उठ कर दर ए हबीब से दिल में है ये, रवि
 
जा कर दयार ए ग़ैर में तन्हा रहा करूँ
 
जा कर दयार ए ग़ैर में तन्हा रहा करूँ
 
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16:15, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण

हर चन्द चाहता हूँ कि उनका कहा करूँ
लेकिन ये आरज़ू कि तमाशा किया करूँ

सूरज की रोशनी ने किया दिल को दाग़ दाग़
ली है पनाह तीरगी ए शब में क्या करूँ

हर अश्क ए ख़ून ए दिल के है जी में ये आजकल
ऐसा भी हो कि पलकों से उनकी बहा करूँ

हो यूँ, कि दिन ढले कोई आकर मिरे क़रीब
रूदाद मेरी मुझ से कहे, मैं सुना करूँ

लब पर शिकायत ए ग़म ए दौराँ न आ सकी
मायूसियों ने शर्त लगाई थी, क्या करूँ

बे बाल ओ पर सही ये मगर बे अमल नहीं
मुर्ग़ ए चमन को क़ैद ए क़फ़स से रिहा करूँ

उठ कर दर ए हबीब से दिल में है ये, रवि
जा कर दयार ए ग़ैर में तन्हा रहा करूँ