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"सबके चरण गहूँ मैं / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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दबे और कुचले पौधों को | दबे और कुचले पौधों को | ||
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हर विपदा में- | हर विपदा में- |
19:51, 11 मार्च 2012 का अवतरण
मेरी कोशिश
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं
चल पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
तोड़ सकूँ
चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे
हर राही
मंजिल पा जाए
ऐसी राह बनू मैं
थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ
हर विपदा में-
चिन्ता में
सबके साथ दहूँ मैं
जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए
नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए
ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
सबके चरण गहूँ मैं