भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब दे ही रहा है तो मुक़म्मल बयान दे / मनु भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKRachna |रचनाकार=मनु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}} <Poem> अब दे ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:52, 12 मार्च 2012 के समय का अवतरण

अब दे ही रहा है तो मुक़म्मल बयान दे
वादे से फिर न जाएगा मुझको ज़ुबान दे

रखना गुरुर से भी अलग उसको ऐ ख़ुदा
जब भी किसी को तू बहुत ऊंची उड़ान दे

पहचान हुई कुछ ना तेरा नाम ही हुआ
किसने कहा था तुझसे मुहब्बत में जान दे

सारी ज़मीन दे दे किसी को भले ही तू
मुझको तो रहने के लिए बस इक मकान दे

क़िस्मत में ज़िन्दगी है तो बेफिक्र रहना तुम
सईय्याद तुमपे तीर भले क्यूँ ना तान दे

मंदिर पे सिर्फ नाम कि ख़ातिर गया है तू
गर दे ही रहा है तो 'मनु' गुप्त दान दे