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"सबके सब बहरे / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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मंजिल तक जाने के   
 
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कागजी मसौदे,  
 
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खुले आम रौंदे,  
 
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सूरज के आँगन में   
 
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22:44, 13 मार्च 2012 के समय का अवतरण

सबके सब बहरे

होठों पर लगे हुये
फौलादी पहरे
किससे क्या कहना है
सबके सब बहरे

राजा का दरबारी
विप्लव का अगुवा
मनमाना खेल रहा
दौलत का फगुवा
डूबा है राजमहल
रंगो में गहरे

हड़तालें ,आन्दोलन
बेमतलब बातें,
सिक्कों पर तुली हुयी
सबकी औकातें
मंजिल तक जाने के
गलियारे सँकरे

भाषण उम्मीदों के
कागजी मसौदे,
महँगी बाजारों नें
खुले आम रौंदे,
सूरज के आँगन में
अँधियारे पसरे।