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"लड़ता रहा उमर भर मैं / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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काँटे चुभे डगर भर फिर भी
 
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रोक न पाया मुझे समय का  
 
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धारदार पानी  
 
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22:25, 16 मार्च 2012 के समय का अवतरण


लड़ता रहा उमर भर मैं

लड़ता रहा उमर भर मैं
विपरीत हवाओं से
पर न हिले दृढ़ रहे इरादे
लौह शिलाओं से

पाकर ताप बर्फ सा गलना
मुझे नहीं आया
और आम को इमली कहना
भी न मुझे भाया
पग-पग मिले न जाने कितने
दंश छलावों से

लोगों ने मुझ पर सुख सुविधा
के डोरे डाले
चाबुक दिखला जड़ने चाहे
ओठों पर ताले
अंगारों पर चला रात दिन
नंगे पाँवों से

काँटे चुभे डगर भर फिर भी
हार नहीं मानी
रोक न पाया मुझे समय का
धारदार पानी
रहा जूझता बेगुनाह ही
मिली सजाओं से