भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
घर की दुनिया माँ होती है  
 
घर की दुनिया माँ होती है  
  
उसके हाथ का रूहा-सूखा-
+
उसके हाथ का रूखा-सूखा-
 
भी हो जाता  
 
भी हो जाता  
 
है काजू-सा  
 
है काजू-सा  

19:26, 18 मार्च 2012 का अवतरण

घर की दुनिया
माँ होती है
खुशियों की क्रीम
परसने को
दु:खों का दही विलोती है

पूरे अनुभव एक तरफ हैं
मइया के अनुभव
के आगे
जब भी उसके पास गए हम
लगा अँधेरे में
हम जागे

अपने मन की
परती भू पर
शबनम आशा की बोती है
घर की दुनिया माँ होती है

उसके हाथ का रूखा-सूखा-
भी हो जाता
है काजू-सा
कम शब्दों में खुल जाती वह
ज्यों संस्कृति की
हो मंजूषा

हाथ पिता का
खाली हो तो
छिपी पोटली का मोती है
घर की दुनिया माँ होती है