भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम बंजारे / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} <poem> हम बं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

13:09, 19 मार्च 2012 का अवतरण

हम बंजारे
मारे-मारे
फिरते-रहते
गली-गली

जलती भट्ठी
तपता लोहा
नए रंग ने
है मन मोहा
चाहें जैसा
मोड़ें वैसा
धरे निहाई
अली-बली

नए-नए-
औज़ार बनाएँ
नाविक के
पतवार बनाएँ
रही कठौती
अपनी फूटी
खा भी लेते
भुनी-जली

राहगीर मिल
ताने कसते
हम हैं फिर भी
रहते हंसते
अभी आपका
समय सहारा
जो सुन लेते
बुरी-भली