भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चीख़े मन का मोर / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> कोई अपना छो…)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
कोई अपना
 
कोई अपना
 
छोड़ साथ यों
 
छोड़ साथ यों
चला गया किस ओर !
+
चला गया किस ओर  
  
 
टप-टप-टप-टप
 
टप-टप-टप-टप
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
चीख़ रहा है
 
चीख़ रहा है
 
पल-छिन छिन-पल
 
पल-छिन छिन-पल
अपने मन का मोर !
+
अपने मन का मोर  
  
 
किसने जाना
 
किसने जाना
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
किसने जाना
 
किसने जाना
 
कहाँ और कब
 
कहाँ और कब
मुड़ जाएगी नैया !
+
मुड़ जाएगी नैया  
  
 
जान गए भी
 
जान गए भी
 
तो क्या होगा
 
तो क्या होगा
समय बड़ा है चोर !
+
समय बड़ा है चोर  
  
 
पास हमारे
 
पास हमारे
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
 
मुझको किसी ठिकाने
 
मुझको किसी ठिकाने
  
नयी डगर पर
+
मिलन हमारा
भला चला है
+
ले आयेगी
कभी किसी का ज़ोर !
+
खुशियों की तब भोर
 
</poem>
 
</poem>

13:35, 19 मार्च 2012 के समय का अवतरण

कोई अपना
छोड़ साथ यों
चला गया किस ओर

टप-टप-टप-टप
बरसे पानी
टूटा सपन सलोना
अंदर-अंदर
तिरता जाऊँ
भींगा कोना-कोना

चीख़ रहा है
पल-छिन छिन-पल
अपने मन का मोर

किसने जाना
कहाँ तलक
उड़ पाएगी गौरैया
किसने जाना
कहाँ और कब
मुड़ जाएगी नैया

जान गए भी
तो क्या होगा
समय बड़ा है चोर

पास हमारे
आओगे कब
साथी साथ निभाने
हाथ पकड़कर
ले चलना तब
मुझको किसी ठिकाने

मिलन हमारा
ले आयेगी
खुशियों की तब भोर