भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई ।<br> खेलत ...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
जगन्नाथ धरनीधरहिं, सूरज बलि जाई ॥<br><br> | जगन्नाथ धरनीधरहिं, सूरज बलि जाई ॥<br><br> | ||
− | भावार्थ :-- सबेरे ही | + | भावार्थ :-- सबेरे ही सोने के कटोरे में दही, मक्खन और उत्तम मिठाइयाँ लिये भाई (श्याम-बलराम) खेल रहे हैं, खाते जाते हैं, कुछ गिराते जाते हैं और परस्पर झगड़ते भी हैं । झपटकर एक-दूसरेकी चोटी पकड़ लेते हैं, मैया उन्हें मना करती है । माता रोहिणी ने हँसकर कहा -`दोनों अत्यन्त ढीठ हैं, कुछ भी छोटे बड़े का सम्बन्ध नहीं मानते' मैया यशोदा (यह सुनकर) मुसकरा रही हैं । सूरदास तो इन जगन्नाथ श्यामसुन्दर और धरणीधर बलराम जी पर बलिहारी जाता है । |
22:36, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण
कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत सु मिठाई ।
खेलत खात गिरावहीं, झगरत दोउ भाई ॥
अरस-परस चुटिया गहैं, बरजति है माई ।
महा ढीठ मानैं नहीं, कछु लहुर-बड़ाई ॥
हँसि कै बोली रोहिनी, जसुमति मुसुकाई ।
जगन्नाथ धरनीधरहिं, सूरज बलि जाई ॥
भावार्थ :-- सबेरे ही सोने के कटोरे में दही, मक्खन और उत्तम मिठाइयाँ लिये भाई (श्याम-बलराम) खेल रहे हैं, खाते जाते हैं, कुछ गिराते जाते हैं और परस्पर झगड़ते भी हैं । झपटकर एक-दूसरेकी चोटी पकड़ लेते हैं, मैया उन्हें मना करती है । माता रोहिणी ने हँसकर कहा -`दोनों अत्यन्त ढीठ हैं, कुछ भी छोटे बड़े का सम्बन्ध नहीं मानते' मैया यशोदा (यह सुनकर) मुसकरा रही हैं । सूरदास तो इन जगन्नाथ श्यामसुन्दर और धरणीधर बलराम जी पर बलिहारी जाता है ।