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"प्रेम की स्मृतियाँ-1 / येहूदा आमिखाई" के अवतरणों में अंतर

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हम कल्पना नहीं कर सकते  
 
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कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना  
 
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ऐसा हमने कहा  
 
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और तब से हम रहते हैं इसी एक छवि के भीतर  
 
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दिन-ब-दिन  
 
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एक दूसरे से दूर , उस मकान से दूर  
 
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जहाँ हमने वो शब्द कहे  
 
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अब जैसे बेहोशी की दवा के असर में होता है  
 
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दरवाज़ों का बंद होना और खिड़कियों का खुलना  
 
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कोई दर्द नहीं
 
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वह तो आता है बाद में ......
 
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23:25, 2 अप्रैल 2012 का अवतरण

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»  प्रेम की स्मृतियाँ-1


छवि


हम कल्पना नहीं कर सकते
कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना
ऐसा हमने कहा

और तब से हम रहते हैं इसी एक छवि के भीतर
दिन-ब-दिन
एक दूसरे से दूर , उस मकान से दूर
जहाँ हमने वो शब्द कहे

अब जैसे बेहोशी की दवा के असर में होता है
दरवाज़ों का बंद होना और खिड़कियों का खुलना
कोई दर्द नहीं

वह तो आता है बाद में ......