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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
आंधी में उड़ियो न सखी, मत आंधी में उड़ियो।
ओ३म लिखा स्कूटर दौड़ा राम लिखा कर कार
लेकिन पप्पी दी गड्डी पर न्यौछावर संसार
उन्हीं का होना है संसार
बस न तू आंधी में उड़ियो
आंधी में उडियो न सखी, मत आंधी में उडियो।<br>धक्-धक्-धक्-धक् काँपे हियरा थर-थर-थर-थर पैर ओ३म लिखा स्कूटर दौड़ा राम लिखा कर कार<br>अलादीन को बेढब सूझी बेमौसम यह सैर लेकिन पप्पी दी गड्डी पर न्यौछावर संसार<br>बिना चप्पू-लंगर यह सैर उन्हीं का होना है संसार<br>बस न तू ज़रा आंधी में उडियो<br><br>मत उड़ियो
धक्-धक्-धक्-धक् काँपे हियरा थर-थर-थर-थर पैर<br>खाना खा लेटी ही थी झांसी की रानी थोड़ा अलादीन को बेढब सूझी बेमौसम यह सैर<br>वहीं खाट के पास बंधा था उस का मश्की घोड़ा बिना चप्पू-लंगर यह सैर<br>बड़ी देर से मक्खी उसको एक कर रही तंग खिसियाई रानी ने जब देखे उस के ढंग चीखी, 'नुचवा दूंगी मैं तेरे ये चारों पंख तुड़ा दूँगी मैं आठों पैर ज़रा अरी, फिर आंधी में मत उडियो<br><br>उड़ियो।'
खाना खा लेटी ही थी झांसी की रानी थोडा<br>वहीं खाट के पास बंधा था उस का मश्की घोडा<br>बड़ी देर से मक्खी उसको एक कर रही तंग<br>खिसियाई रानी ने जब देखे उस के ढंग<br>चीखी, 'नुचवा दूंगी मैं तेरे ये चारों पंख<br>तुडा दूँगी मैं आठों पैर<br>अरी, फिर आंधी में उडियो।'<br><br> देस बिराना हुआ मगर इस में ही रहना है<br>कहीं ना छोड़ के जान है, इसे वापस भी पाना है<br>बस न तू आंधी में उडियो। उड़ियो। मती ना आंधी में उडियो।उड़ियो।</poem>
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