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"भाव-कलश (ताँका-संग्रह) / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
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इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है। | इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है। |
21:38, 11 अप्रैल 2012 का अवतरण
डॉ0 भावना कुँअरकी संवेदना निराली है । अपने गाँव के नीम के पेड़ की निबौंलियों को अपनी यादों के आईने में देखती है -
नीम का पेड़
बहुत शरमाए
नटखट-सी
निबौंलियाँ उसको
खूब गुदगुगाएँ
तो उन्हें कहीं आँगन में खेलती धूप में माँ अनाज सुखाती दिखाई देती है ;जिसमें कबूतरी का समावेश उसे मार्मिक बना देता है-
आज फिर माँ
अनाज़ सुखाएगी
वो कबूतरी
पल भर में सब
चट कर जाएगी
भावना जी के ताँका का हर एक शब्द पाठक के मर्म को छू लेता है । जीवन भर हर एक व्यक्ति किसी न किसी अभाव से व्यथित रहता है ; सम्भव: यही जीवन का सत्य है-
आँसू गठरी
खुलकर बिखरी
हर कोशिश
मैं समेटती जाऊँ
पर बाँध न पाऊँ
इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है।