भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भोर भयौ मेरे लाड़िले, जागौ कुँवर कन्हाई / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग बिलावल भोर भयौ मेरे लाड़िले, जागौ कुँवर...)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
हँसत उठे प्रभु सेज तैं, सूरज बलिहारी ॥<br><br>
 
हँसत उठे प्रभु सेज तैं, सूरज बलिहारी ॥<br><br>
  
भावार्थ :-- `मेरे दुलारे लाल! सबेरा हो गया, कुँवरकन्हाई जागो । हे यदुनाथ ! तुम्हारे सब सखा द्वार पर खड़े हैं, (उनके साथ) खेलो। <मुझे अपना मुख दिखलाकर तीनों ताप दूर करो । मेरे नेत्र तुम्हारे मुखरूपी चन्द्रमाके चकोर हैं, इन्हें (अपनी) रूपमाधुरीका पान कराओ ।' तब भक्तोंके हितकारी प्रभु श्यामसुन्दर अपने मुखपर से वस्त्र हटाकर हँसते हुए पलंग परसे उठे । सूरदास अपने इन स्वामी पर बलिहारी है ।
+
भावार्थ :-- `मेरे दुलारे लाल! सबेरा हो गया, कुँवर कन्हाई जागो । हे यदुनाथ ! तुम्हारे सब सखा द्वार पर खड़े हैं, (उनके साथ) खेलो। मुझे अपना मुख दिखलाकर तीनों ताप दूर करो । मेरे नेत्र तुम्हारे मुखरूपी चन्द्रमा के चकोर हैं, इन्हें (अपनी) रूपमाधुरी का पान कराओ ।' तब भक्तों के हितकारी प्रभु श्यामसुन्दर अपने मुखपर से वस्त्र हटाकर हँसते हुए पलंग परसे उठे । सूरदास अपने इन स्वामी पर बलिहारी है ।

19:09, 2 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण

राग बिलावल


भोर भयौ मेरे लाड़िले, जागौ कुँवर कन्हाई ।
सखा द्वार ठाढ़े सबै, खेलौ जदुराई ॥
मोकौं मुख दिखराइ कै, त्रय-ताप नसावहु ।
तुव मुख-चंद चकोर -दृग मधु-पान करावहु ॥
तब हरि मुख-पट दूरि कै भक्तनि सुखकारी ।
हँसत उठे प्रभु सेज तैं, सूरज बलिहारी ॥

भावार्थ :-- `मेरे दुलारे लाल! सबेरा हो गया, कुँवर कन्हाई जागो । हे यदुनाथ ! तुम्हारे सब सखा द्वार पर खड़े हैं, (उनके साथ) खेलो। मुझे अपना मुख दिखलाकर तीनों ताप दूर करो । मेरे नेत्र तुम्हारे मुखरूपी चन्द्रमा के चकोर हैं, इन्हें (अपनी) रूपमाधुरी का पान कराओ ।' तब भक्तों के हितकारी प्रभु श्यामसुन्दर अपने मुखपर से वस्त्र हटाकर हँसते हुए पलंग परसे उठे । सूरदास अपने इन स्वामी पर बलिहारी है ।