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"सपनों की दुनिया में चल / राजेश श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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ऐसे  अवसर  मुझको चंद  मिले हैं
 
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जब भाव,  शब्द। और छंद  मिले हैं
 
जब भाव,  शब्द। और छंद  मिले हैं
तप-से निखरे तेरे बिरहा की अग्निर में जल।
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तप-से निखरे तेरे बिरहा की अग्नि में जल।
  
जब-जब भीतर झांका खण्डिहर मिले
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जब-जब भीतर झांका खण्डर मिले
 
बाहर  देखा  तो  बिखरते  नर मिले
 
बाहर  देखा  तो  बिखरते  नर मिले
 
आंखों की बर्फ में गया सुनहरा सूरज गल।
 
आंखों की बर्फ में गया सुनहरा सूरज गल।
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जिन्दगी फकीर है मत अपनी कह
 
जिन्दगी फकीर है मत अपनी कह
 
खारे आंखों के नीर  आंखों में रह
 
खारे आंखों के नीर  आंखों में रह
अस्ताआचल में है सूरज, जिन्देगी रही है ढल।
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अस्ताचल में है सूरज, जिन्दगी रही है ढल।
  
 
अश्रुओं को शिव का गरल समझ पी जा
 
अश्रुओं को शिव का गरल समझ पी जा
 
वक्र  प्रेम-पथ है,  सरल समझ  जी जा  
 
वक्र  प्रेम-पथ है,  सरल समझ  जी जा  
अभी बिछुड़ेंगे कितने ही दमयन्तीह और नल।
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अभी बिछुड़ेंगे कितने ही दमयन्ती और नल।
 
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18:33, 19 मई 2012 के समय का अवतरण

चल उठ पागल मन,
सपनों की दुनिया में चल।

ऐसे अवसर मुझको चंद मिले हैं
जब भाव, शब्द। और छंद मिले हैं
तप-से निखरे तेरे बिरहा की अग्नि में जल।

जब-जब भीतर झांका खण्डर मिले
बाहर देखा तो बिखरते नर मिले
आंखों की बर्फ में गया सुनहरा सूरज गल।

जिन्दगी फकीर है मत अपनी कह
खारे आंखों के नीर आंखों में रह
अस्ताचल में है सूरज, जिन्दगी रही है ढल।

अश्रुओं को शिव का गरल समझ पी जा
वक्र प्रेम-पथ है, सरल समझ जी जा
अभी बिछुड़ेंगे कितने ही दमयन्ती और नल।