भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विश्वास अपनी पीढ़ी के / राजेश श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
गल चुके हैं पाये बुजुर्गों से विरासत में मिली सीढ़ी के | गल चुके हैं पाये बुजुर्गों से विरासत में मिली सीढ़ी के | ||
− | अब हमें ही संभालने हैं आखिर | + | अब हमें ही संभालने हैं आखिर विश्वास अपनी पीढ़ी के |
वक्त से लड़ना है दोस्त् | वक्त से लड़ना है दोस्त् | ||
− | + | पत्थरों पर भी सोना होगा। | |
कुछ इस पार, कुछ उस पार और कुछ बीच में खड़ी हैं दीवार | कुछ इस पार, कुछ उस पार और कुछ बीच में खड़ी हैं दीवार |
18:35, 19 मई 2012 के समय का अवतरण
अच्छा् काटना चाहो
तो बन्धु, अच्छा ही बोना होगा
अन्यथा मित्र! जिंदगी भर
अपने किए पर रोना होगा।
गल चुके हैं पाये बुजुर्गों से विरासत में मिली सीढ़ी के
अब हमें ही संभालने हैं आखिर विश्वास अपनी पीढ़ी के
वक्त से लड़ना है दोस्त्
पत्थरों पर भी सोना होगा।
कुछ इस पार, कुछ उस पार और कुछ बीच में खड़ी हैं दीवार
एक कागज की नाव नदी में, हजार यात्रियों के इश्त हार
दूसरे जा सकें पार
इसलिए पुल तुम्हें होना होगा।
जिंदगी व्यव्साय नहीं है जो लुटाते हो अनुबंधों पर
तुम तब तक ही जीवित हो बंधु, हो जब तक अपने कंधों पर
जैसे भी हो संभव
बोझ अपना स्वंयं ही ढोना होगा।