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"बोलेंगे एक दिन / राजेश श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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शोख प्रियतमा है नदी, धारा भुजाएं हैं | शोख प्रियतमा है नदी, धारा भुजाएं हैं | ||
आलिंगन में जिनके मीलों बहते आए हैं | आलिंगन में जिनके मीलों बहते आए हैं | ||
रेत-रेत होकर पथरीला तन बिखर गया है | रेत-रेत होकर पथरीला तन बिखर गया है | ||
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टुकड़ा-टुकड़ा हो लेंगे एक दिन | टुकड़ा-टुकड़ा हो लेंगे एक दिन | ||
− | ये | + | ये पत्थर भी बोलेंगे एक दिन। |
ये माना कि ये बोलने के काबिल नहीं होते | ये माना कि ये बोलने के काबिल नहीं होते | ||
− | ये | + | ये पत्थर तो हैं मगर पत्थरदिल नहीं होते |
इनके होंठों पर चुप्पी का पहरा होता है | इनके होंठों पर चुप्पी का पहरा होता है | ||
दिखता नहीं है जो वह घाव गहरा होता है | दिखता नहीं है जो वह घाव गहरा होता है | ||
पर हँसकर ही डोलेंगे एक दिन | पर हँसकर ही डोलेंगे एक दिन | ||
− | ये | + | ये पत्थर भी बोलेंगे एक दिन। |
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18:37, 19 मई 2012 के समय का अवतरण
अपनी जुबान खोलेंगे एक दिन
ये पत्थर भी बोलेंगे एक दिन।
शोख प्रियतमा है नदी, धारा भुजाएं हैं
आलिंगन में जिनके मीलों बहते आए हैं
रेत-रेत होकर पथरीला तन बिखर गया है
समर्पण का अल्हड़ अध्याय पर निखर गया है
टुकड़ा-टुकड़ा हो लेंगे एक दिन
ये पत्थर भी बोलेंगे एक दिन।
ये माना कि ये बोलने के काबिल नहीं होते
ये पत्थर तो हैं मगर पत्थरदिल नहीं होते
इनके होंठों पर चुप्पी का पहरा होता है
दिखता नहीं है जो वह घाव गहरा होता है
पर हँसकर ही डोलेंगे एक दिन
ये पत्थर भी बोलेंगे एक दिन।