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"शमशाद इलाही अंसारी/ परिचय" के अवतरणों में अंतर

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परिचय
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नाम: शमशाद इलाही अंसारी  
 
नाम: शमशाद इलाही अंसारी  
  
उपनाम:       "शम्स"  
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उपनाम: "शम्स"  
  
जन्म तिथी/स्थान:   1966 जनवरी का 16 वाँ दिन, रात पौने नौ बजे, कस्बा मवाना, ज़िला मेरठ (उत्तर प्रदेश) भारत  
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जन्म तिथी/स्थान: 1966 जनवरी का 16 वाँ दिन, रात पौने नौ बजे, कस्बा मवाना, ज़िला मेरठ (उत्तर प्रदेश) भारत  
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शिक्षा:  मेरठ कालिज मेरठ से दर्शनशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर 1987 वर्ष 1988 में पी०एच०डी० के लिये पंजीकृत जो किन्ही कारणवश पूरी न हो सकी।
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पारिवारिक पृष्ठभूमि: मध्यवर्ग, मेहनतकश मुस्लिम परिवार में दो बडे़ भाईयों के बाद तीसरी सन्तान के रुप में पैदाइश हुई, फ़िर एक छोटी बहन और दो भाई, कुल छह भाई बहन. एक छोटे भाई की मृत्यु हो चुकी है। पिता श्री इरशाद इलाही जो साईकिल मेकेनिक थे (1999 में देहांत) को एक पंजाबी हिंदू लाला हँसराज मित्तल ने परवरिश दी एक दत्तक पुत्र की हैसियत से। मेरे दादा का स्वर्गवास 1987 में हुआ था. विश्वविख्यात भारतीय गंगा-जमुनी सँस्कृति का साक्षात जीवंत उदाहरण है मेरा परिवार।
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वैवाहिक जीवन: सिविल मैरिज कोर्ट द्वारा प्रमाणित दिनाँक 18.02.1991 से बाकायदा शादीशुदा, पत्नी का नाम अब ज़किया शमशाद है, पहले वे ज़ैदी थीं. सिविल मैरिज क्यों की इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं, ज़किया केन्द्रिय विद्यालय में अध्यापन कार्य से जुडी थी| हिंदी उनका विषय है. मैं एक पुत्री का पिता भी हूँ जिसका जन्म वर्ष 1993 में हुआ|
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जीविकोपार्जन गतिविधियाँ: छात्र जीवन से ही वाम विचार धारा की राजनीति में संलग्नता पहला पडा़व था, पूर्ण कालिक पार्टी कार्यकर्ता के रुप में यह सफ़र जारी रहा [1988-1989],1989 में ट्रेनी उप-संपादक पद पर मेरठ स्थित अमर उजाला में कुछ समय तक कार्य़ किया| व्यवसायिक प्रतिष्टानों की आन्तरिक राजनीति की पहली पटखनी यहीं खाई। 1990-91 से स्वतंत्र पत्रकारिता शुरु की और दिल्ली के संस्थागत पत्रों को छोड़ कर सभी राज्यों के हिंदी समाचार पत्रों में अनगिनत लेख, रिपोर्ट, साक्षात्कार एंव भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्र, अल्पसंख्यक प्रश्न, सुधारवादी इस्लाम आदि विषयों पर प्रकाशित हुए। समय-समय पर स्थायी नौकरी पाने की कोशिश भी की, मिली भी, लेकिन सब अस्थायी ही रहा।मस्लन हापुड़ तहसील में "नव-भारत टाईम्स" के संवाददाता के सहयोगी के रुप में 1991 से 1996 तक कार्य किया| 1996 से 2001 तक दिल्ली और मानेसर (गुड़गाँव) के बीच भाग-दौड़ में कुछ समय "कुबेर टाईम्स"- दिल्ली का ज़िला गुड़गाँव संवाददाता भी रहा|
  
शिक्षा:    मेरठ कालिज मेरठ से दर्शनशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर 1987 वर्ष 1988 में पी०एच०डी० के लिये पंजीकृत जो किन्ही कारणवश पूरी न हो सकी। 
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दिल्ली से ही प्रकाशित होने वाले "जनपथ-मेल" साप्ताहिक में भी काम किया| सन्‌ 2000 में एक लेखक मित्र के आग्रह पर दिल्ली दूरदर्शन के लिए बने "सरहद के मुहाफ़िज़" सीरियल का कार्यकारी निर्माता भी बना. यह काम मुंबई में करने भी गया, दर्जनों सिनोप्सिस लिखे, सिक्रिप्टिंग भी की पर दाल न गली।  
 
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पारिवारिक पृष्ठभूमि:  मध्यवर्ग, मेहनतकश मुस्लिम परिवार में दो बडे़ भाईयों के बाद तीसरी सन्तान के रुप में पैदाइश हुई, फ़िर एक छोटी बहन और दो भाई, कुल छह भाई बहन. एक छोटे भाई की मृत्यु हो चुकी है। पिता श्री इरशाद इलाही जो साईकिल मेकेनिक थे (1999 में देहांत) को एक पंजाबी हिंदू लाला हँसराज मित्तल ने परवरिश दी एक दत्तक पुत्र की हैसियत से। मेरे दादा का स्वर्गवास 1987 में हुआ था. विश्वविख्यात भारतीय गंगा-जमुनी सँस्कृति का साक्षात जीवंत उदाहरण है मेरा परिवार। 
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वर्तमान: हराम की खायी नहीं, हलाल की मिली नहीं, विवश होकर बड़े भाई ने दुबई बुला लिया मार्च 2002 में, 3-4 दिनों में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गयी, बस काम करता गया पद भी बढ़ता गया.ताज अल मुलूक जनरल ट्रेडिंग एल०एल०सी० दुबई- संयुक्त अरब अमीरात में एडमिन एण्ड एच० आर० मैनेजर पद पर कार्यरत मार्च 2009, उस समय तक, जब तक अंन्तराष्ट्रिय आर्थिक मन्दी की मार पड़ती, लिहाजा लम्बे अवकाश जैसे साफ़्ट टर्मिनेशन का शिकार हुआ| आर्थिक मंदी का वर्तमान दौर मेरे जैसे कई कथित "अनुत्पादक" पदों को मेरी कंपनी में भी खा गया.इस बीच क़लम पुन: उठा ली है. दिल्ली से संचलित कट्टरपंथी इस्लाम का विरोध करने वाली एक वेब साईट www.newageislam.net  के लिये कई लेख, टिप्पणियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं. मेरा ब्लाग भी है,बस गूगल में मेरा नाम सर्च करें, काफ़ी मसाला मिलेगा. मेरी पत्नी ज़किया भी यहीं एक स्कूल में कार्यरत थी और बेटी भी यहीं पढ़ती थी. अक्टूबर ३०,२००९ को तकदीर ने फ़िर करवट बदली और मिसिसागा,कनाडा प्रवासी की हैसियत से पहुँचा दिया. एकबार फ़िर से दो वक्त की रोटी खाने की टेबिल पर पहुँचे, इसकी जद्दोजहद अभी जारी है..!!!
 
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वैवाहिक जीवन: सिविल मैरिज कोर्ट द्वारा प्रमाणित दिनाँक 18.02.1991 से बाकायदा शादीशुदा, पत्नी का नाम अब ज़किया शमशाद है, पहले वे ज़ैदी थीं. सिविल मैरिज क्यों की इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं, ज़किया केन्द्रिय विद्यालय में अध्यापन कार्य से जुडी थी| हिंदी उनका विषय है. मैं एक पुत्री का पिता भी हूँ  जिसका जन्म वर्ष 1993 में हुआ|
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भविष्य की योजनाएँ: अपने पिता के जीवन और प्रवासी जीवन के मनोविज्ञान पर शीघ्र ही उपन्यास लिखने की योजना है।  
 
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जीविकोपार्जन
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आकांक्षा: बस एक लेखक की हैसियत से मरुं।  
 
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गतिविधियाँ:    छात्र जीवन से ही वाम विचार धारा की राजनीति में संलग्नता पहला पडा़व था, पूर्ण कालिक पार्टी कार्यकर्ता के रुप में यह सफ़र जारी रहा [1988-1989],1989 में ट्रेनी उप-संपादक पद पर मेरठ स्थित अमर उजाला में कुछ समय तक कार्य़ किया| व्यवसायिक प्रतिष्टानों की आन्तरिक राजनीति की पहली पटखनी यहीं खाई। 1990-91 से स्वतंत्र पत्रकारिता शुरु की और दिल्ली के संस्थागत पत्रों को छोड़ कर सभी राज्यों के हिंदी समाचार पत्रों में अनगिनत लेख, रिपोर्ट, साक्षात्कार एंव भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्र, अल्पसंख्यक प्रश्न, सुधारवादी इस्लाम आदि विषयों पर प्रकाशित हुए। समय-समय पर स्थायी नौकरी पाने की कोशिश भी की, मिली भी, लेकिन सब अस्थायी ही रहा।मस्लन हापुड़ तहसील में "नव-भारत टाईम्स" के संवाददाता के सहयोगी के रुप में 1991 से 1996 तक कार्य किया| 1996 से 2001 तक दिल्ली और मानेसर (गुड़गाँव) के बीच भाग-दौड़ में कुछ समय "कुबेर टाईम्स"- दिल्ली का ज़िला गुड़गाँव संवाददाता भी रहा|
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अभिरुचियाँ: इतिहास, अर्थशास्त्र, इस्लाम से संबंधित पुस्तकें, लेख पढ़ना, उस्ताद गायकों की ग़ज़लें सुनना, नई नई जगहों का भ्रमण, फ़िशिंग करना, दोस्ती करना और उन्हें निभाना.प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना और फोटोग्राफी.
                 
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दिल्ली से ही प्रकाशित होने वाले "जनपथ-मेल" साप्ताहिक में भी काम किया| सन्‌ 2000 में एक लेखक मित्र के आग्रह पर दिल्ली दूरदर्शन के लिए बने "सरहद के मुहाफ़िज़" सीरियल का कार्यकारी निर्माता भी बना. यह काम मुंबई में करने भी गया, दर्जनों सिनोप्सिस लिखे, सिक्रिप्टिंग भी की पर दाल न गली।   
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वर्तमान:       हराम की खायी नहीं, हलाल की मिली नहीं, विवश होकर बड़े भाई ने दुबई बुला लिया मार्च 2002 में, 3-4 दिनों में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गयी, बस काम करता गया पद भी बढ़ता गया.ताज अल मुलूक जनरल ट्रेडिंग एल०एल०सी० दुबई- संयुक्त अरब अमीरात में एडमिन एण्ड एच० आर० मैनेजर पद पर कार्यरत मार्च 2009, उस समय तक, जब तक अंन्तराष्ट्रिय आर्थिक मन्दी की मार पड़ती, लिहाजा लम्बे अवकाश जैसे साफ़्ट टर्मिनेशन का शिकार हूँ| आर्थिक मंदी का वर्तमान दौर मेरे जैसे कई कथित "अनुत्पादक" पदों को मेरी कंपनी में भी खा गया.इस बीच क़लम पुन: उठा ली है. दिल्ली से संचलित कट्टरपंथी इस्लाम का विरोध करने वाली एक वेब साईट न्यु एज इस्लाम.काम www.newageislam.org के लिये कई लेख,टिप्पणियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं. मेरा ब्लाग भी है,बस गूगल में मेरा नाम सर्च करें, काफ़ी मसाला मिलेगा. मेरी पत्नी ज़किया भी यहीं एक स्कूल में कार्यरत हैं और बेटी भी यहीं पढ़ती है.
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भविष्य की योजनाएँ: अपने पिता के जीवन और प्रवासी जीवन के मनोविज्ञान पर शीघ्र ही उपन्यास लिखने की योजना है।  
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आकांक्षा:           बस एक लेखक की हैसियत से मरुं।   
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अभिरुचियाँ:         इतिहास, अर्थशास्त्र, इस्लाम से संबंधित पुस्तकें, लेख पढ़ना, उस्ताद गायकों की ग़ज़लें सुनना, नई नई जगहों का भ्रमण, फ़िशिंग करना, दोस्ती करना और उन्हें निभाना.प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना और फोटोग्राफी.
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संप्रति:    शमशाद इलाही अंसारी, पी. ओ. बोक्स नम्बर: 51688 दुबई, संयुक्त अरब अमीरात  मोबाइल:0097 1508497165 ई0 मेल: shamshad66@hotmail.com
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21:58, 19 मई 2012 के समय का अवतरण

परिचय

नाम: शमशाद इलाही अंसारी

उपनाम: "शम्स"

जन्म तिथी/स्थान: 1966 जनवरी का 16 वाँ दिन, रात पौने नौ बजे, कस्बा मवाना, ज़िला मेरठ (उत्तर प्रदेश) भारत

शिक्षा: मेरठ कालिज मेरठ से दर्शनशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर 1987 वर्ष 1988 में पी०एच०डी० के लिये पंजीकृत जो किन्ही कारणवश पूरी न हो सकी। पारिवारिक पृष्ठभूमि: मध्यवर्ग, मेहनतकश मुस्लिम परिवार में दो बडे़ भाईयों के बाद तीसरी सन्तान के रुप में पैदाइश हुई, फ़िर एक छोटी बहन और दो भाई, कुल छह भाई बहन. एक छोटे भाई की मृत्यु हो चुकी है। पिता श्री इरशाद इलाही जो साईकिल मेकेनिक थे (1999 में देहांत) को एक पंजाबी हिंदू लाला हँसराज मित्तल ने परवरिश दी एक दत्तक पुत्र की हैसियत से। मेरे दादा का स्वर्गवास 1987 में हुआ था. विश्वविख्यात भारतीय गंगा-जमुनी सँस्कृति का साक्षात जीवंत उदाहरण है मेरा परिवार।

वैवाहिक जीवन: सिविल मैरिज कोर्ट द्वारा प्रमाणित दिनाँक 18.02.1991 से बाकायदा शादीशुदा, पत्नी का नाम अब ज़किया शमशाद है, पहले वे ज़ैदी थीं. सिविल मैरिज क्यों की इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं, ज़किया केन्द्रिय विद्यालय में अध्यापन कार्य से जुडी थी| हिंदी उनका विषय है. मैं एक पुत्री का पिता भी हूँ जिसका जन्म वर्ष 1993 में हुआ|

जीविकोपार्जन गतिविधियाँ: छात्र जीवन से ही वाम विचार धारा की राजनीति में संलग्नता पहला पडा़व था, पूर्ण कालिक पार्टी कार्यकर्ता के रुप में यह सफ़र जारी रहा [1988-1989],1989 में ट्रेनी उप-संपादक पद पर मेरठ स्थित अमर उजाला में कुछ समय तक कार्य़ किया| व्यवसायिक प्रतिष्टानों की आन्तरिक राजनीति की पहली पटखनी यहीं खाई। 1990-91 से स्वतंत्र पत्रकारिता शुरु की और दिल्ली के संस्थागत पत्रों को छोड़ कर सभी राज्यों के हिंदी समाचार पत्रों में अनगिनत लेख, रिपोर्ट, साक्षात्कार एंव भारतीय राजनीतिक अर्थशास्त्र, अल्पसंख्यक प्रश्न, सुधारवादी इस्लाम आदि विषयों पर प्रकाशित हुए। समय-समय पर स्थायी नौकरी पाने की कोशिश भी की, मिली भी, लेकिन सब अस्थायी ही रहा।मस्लन हापुड़ तहसील में "नव-भारत टाईम्स" के संवाददाता के सहयोगी के रुप में 1991 से 1996 तक कार्य किया| 1996 से 2001 तक दिल्ली और मानेसर (गुड़गाँव) के बीच भाग-दौड़ में कुछ समय "कुबेर टाईम्स"- दिल्ली का ज़िला गुड़गाँव संवाददाता भी रहा|

दिल्ली से ही प्रकाशित होने वाले "जनपथ-मेल" साप्ताहिक में भी काम किया| सन्‌ 2000 में एक लेखक मित्र के आग्रह पर दिल्ली दूरदर्शन के लिए बने "सरहद के मुहाफ़िज़" सीरियल का कार्यकारी निर्माता भी बना. यह काम मुंबई में करने भी गया, दर्जनों सिनोप्सिस लिखे, सिक्रिप्टिंग भी की पर दाल न गली।

वर्तमान: हराम की खायी नहीं, हलाल की मिली नहीं, विवश होकर बड़े भाई ने दुबई बुला लिया मार्च 2002 में, 3-4 दिनों में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गयी, बस काम करता गया पद भी बढ़ता गया.ताज अल मुलूक जनरल ट्रेडिंग एल०एल०सी० दुबई- संयुक्त अरब अमीरात में एडमिन एण्ड एच० आर० मैनेजर पद पर कार्यरत मार्च 2009, उस समय तक, जब तक अंन्तराष्ट्रिय आर्थिक मन्दी की मार पड़ती, लिहाजा लम्बे अवकाश जैसे साफ़्ट टर्मिनेशन का शिकार हुआ| आर्थिक मंदी का वर्तमान दौर मेरे जैसे कई कथित "अनुत्पादक" पदों को मेरी कंपनी में भी खा गया.इस बीच क़लम पुन: उठा ली है. दिल्ली से संचलित कट्टरपंथी इस्लाम का विरोध करने वाली एक वेब साईट www.newageislam.net के लिये कई लेख, टिप्पणियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं. मेरा ब्लाग भी है,बस गूगल में मेरा नाम सर्च करें, काफ़ी मसाला मिलेगा. मेरी पत्नी ज़किया भी यहीं एक स्कूल में कार्यरत थी और बेटी भी यहीं पढ़ती थी. अक्टूबर ३०,२००९ को तकदीर ने फ़िर करवट बदली और मिसिसागा,कनाडा प्रवासी की हैसियत से पहुँचा दिया. एकबार फ़िर से दो वक्त की रोटी खाने की टेबिल पर पहुँचे, इसकी जद्दोजहद अभी जारी है..!!!

भविष्य की योजनाएँ: अपने पिता के जीवन और प्रवासी जीवन के मनोविज्ञान पर शीघ्र ही उपन्यास लिखने की योजना है।

आकांक्षा: बस एक लेखक की हैसियत से मरुं।

अभिरुचियाँ: इतिहास, अर्थशास्त्र, इस्लाम से संबंधित पुस्तकें, लेख पढ़ना, उस्ताद गायकों की ग़ज़लें सुनना, नई नई जगहों का भ्रमण, फ़िशिंग करना, दोस्ती करना और उन्हें निभाना.प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना और फोटोग्राफी.