भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उन्नीस सौ चौरासी के बाद / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=पतंग और चरखड़ी / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:04, 23 मई 2012 के समय का अवतरण

मेरी गली की औरतें दुखियारी
विधवा हैं सारी
सब जी रही हैं ऐसे
मजबूरी में कोई रस्म निभाए जैसे मेरे जहन में कभी नहीं सोती है सारी गली रोती है रचनाकाल : 2001