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"हमारे सिवा इसका रस कौन जाने ! / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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वो अपनों की बातें, वो अपनों की ख़ु-बू
हमारी ही हिन्दी, हमारी ही उर्दू !
ये कोयल-ओ- बुलबुल के मीठे तराने :
हमारे सिवा इसका रस कौन जाने !