भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लगन लागी ना अन्तर पट में / शिवदीनराम जोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | + | |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी |
− | + | ||
− | + | ||
}} | }} | ||
<poem> लगन लागी ना अन्तर पट में। | <poem> लगन लागी ना अन्तर पट में। |
11:23, 30 मई 2012 का अवतरण
लगन लागी ना अन्तर पट में।
दर्शन केहि विधी होय, राम बैठे है तेरे घट में।
तन की चोरी, मन की चोरी, करती रहती सुरता गोरी,
कैसे मिले, मिले वह सतगुरू, सुरता रहती हट में।
दिल तो खोल, बोल हरि मुख से, रहना चाहे जो तू सुख से,
कपट छांडिमन, मंत्र को रट रे, लगजा सुखमय तट में।
कहा करे गुरू ज्ञान बतावे, अपने शिष्य जनों को चावे,
शिष्य न समझे लगा हुआ वो, तोता की सी रट में।
कहे शिवदीन व्यर्थ दिन खोये, आलस में भर भर कर सोये,
गुरू चरणों में चित्त न देवे, पडा रहे सठ खट में।