भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शहरे दिल हो के क़रिया-ए-जां हो / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=हवाओं के साज़ प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:29, 1 जून 2012 के समय का अवतरण
शहरे दिल हो के क़रिया-ए-जाँ<ref> आत्मा का गाँव</ref> हो
दर्द तेरा कहीं तो मेहमाँ हो
हम फ़क़ीरों को सब बराबर है
क़सरे शाही<ref> राजमहल</ref> हो या बियाबाँ हो
चन्द ज़ख़्मों का क़र्ज़ क्या रक्खूँ
वार अबके हयात पैमाँ<ref>जीवन यापन</ref> हो
अश्क मेरे गुहर भी हो जायें
काश आँखों को तेरा दामाँ हो
बेवफाई उसे है रास आयी
फिर वफ़ा करके क्यों पशेमाँ हो
है परीजाद की नज़र तुझ पर
अब ख़ुदा ही तिरा निगहबाँ हो
शब्दार्थ
<references/>