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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 11" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 101 से 110 तक'''
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(101)
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जँाउ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
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काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।
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कौन देव बराइ बिरद- हित, हठि हठि अधम उधारे।
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खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे।।
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देव, दनुज, मुनि,नाग मनुज सब, माया -बिबस बिचारे।
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तिनके हाथ दासतुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।।
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20:56, 16 जून 2012 के समय का अवतरण