भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"निसिदिन बरसत नैन हमारे / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					| Lalit Kumar  (चर्चा | योगदान) | Lalit Kumar  (चर्चा | योगदान)  छो | ||
| पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
| − | + | {{KKGlobal}} | |
| − | + | {{KKRachna | |
| − | + | |रचनाकार=सूरदास | |
| − | + | }} | |
| निसिदिन बरसत नैन हमारे। | निसिदिन बरसत नैन हमारे। | ||
23:13, 2 जनवरी 2008 का अवतरण
निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥
 
	
	

