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"तुरपाई / हाज़ेल हाल" के अवतरणों में अंतर

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11:54, 18 जून 2012 का अवतरण

हवा बारिश की सुइयों से लगातार सिल रही है
बारिश की चमकती सुइयों से
वह धरती के महीन कपड़े पर तुरपाई कर रही है ... टिक ...तिक ...

टिक .... टिक ..
तिक .... तिक ...
 

ओह,
हवा ने मुझे भी कई बार
इस सबके साथ सिल डाला है

टिक ....तिक
तिक ...टिक .....

 

इस बसंत को पहनने के लिए
बहुत बारीक बहुत महीन कपड़े चाहिए
पहले वाले दूसरे बसंतों की तरह

रेशमी घास के कपड़े .... और घास भी ऐसी ,
जैसे कोई बारीक कशीदाकारी ... टिक ... तिक ... तिक....

टिक ..... टिक... टिक ....
तिक .... तिक ....तिक ....

फिर हर कशीदाकारी इतनी बारीकी से
कि जैसे बाहर की धरती से कोई भी रंग उठाने में सलाइयों को डर लग रहा हो

टिक..
तिक ...

और फिर इसके बाद फूलों की गोल-गोल पंखुड़ियाँ
और फिर वे सारे साफ-शफ़्फ़ाफ महीन सुंदर कपड़े
जिन्हें बसंत इस बार पहनेगा

हवा को वर्षा की चमकती-लपकती सुइयों-सलाइयों से
तुरपाई करनी है ...धरती के महीन कपड़े के साथ ....

टिक .... टिक .... टिक...
तिक .... तिक ... तिक ....

भविष्य के सारे बसंतों के लिए .....
सारे आने वाले बसंतों के लिए

टिक ...
तिक ....

टिक ... टिक ...
तिक ... तिक ... ।।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदय प्रकाश