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+ | गोश्त का कोई मुख़्तसर रेशा | ||
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1.ध्यान, 2.कृत्रिम, 3.औपचारिकता। | 1.ध्यान, 2.कृत्रिम, 3.औपचारिकता। |
23:42, 30 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
आज का दिन अजब-सा गुज़रा है
इस तरह
जैसे दिन के दाँतों में
गोश्त का कोई मुख़्तसर रेशा
बेसबब आ के
फँस गया-सा हो
एक मौजूदगी हो अनचाही
एक मेहमान नाख़रूश जिसे
चाहकर भी निकाल ना पाएँ
और जबरन जो तवज्जों1 माँगे
आप भी मसनुई2 तकल्लुफ़3 से
देखकर उसको मुस्कराते रहें
भेड़िए आदमी की सूरत में
इस क़दर क्यों क़रीब होते हैं
1.ध्यान, 2.कृत्रिम, 3.औपचारिकता।