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"उसूलों पे जहाँ आँच आये / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

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नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
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थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है<br><br>
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सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है<br><br>
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मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
  
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सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है<br><br>
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मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है<br><br>
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16:17, 4 अगस्त 2012 का अवतरण

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है