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"तेरा मेरा मनुवां / कबीर" के अवतरणों में अंतर

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(New page: रचनाकार: कबीर Category:कविताएँ Category:कबीर *~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ तेरा मेरा मनुवां...)
 
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तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
 
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
  
  
मै कहता हौं आँखन देखी ,तू कहता कागद की लेखी ।
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मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।
  
मै कहता सुरझावन हारी ,तू राख्यो अरुझाई रे ॥
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मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥
  
  
मै कहता तू जागत रहियो ,तू जाता है सोई रे ।
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मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।
  
मै कहता निरमोही रहियो , तू जाता है मोहि रे ॥
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मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥
  
  
जुगन-जुगन समझावत हारा,कहा न मानत कोई रे ।
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जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।
  
तू तो रंगी फिरै बिहंगी , सब धन डारा खोई रे ॥
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तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥
  
  
 
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
 
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
  
कहत कबीर सुनो भाई साधो ,तब ही वैसा होई रे ॥
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कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥

22:51, 5 अक्टूबर 2007 का अवतरण

तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।


मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।

मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥


मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।

मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥


जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।

तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥


सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥