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<{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}{{KKPageNavigation|सारणी=आत्म-बोध /Poem>मृदुल कीर्ति|आगे=आत्म-बोध / भाग 4 / मृदुल कीर्ति|पीछे=आत्म-बोध / भाग 2 / मृदुल कीर्ति}}<poem>
दीखत नभ बहु रंग विधाना, कारण दोष दृष्टि अज्ञाना,
देह इन्द्रियन के सब करमा, समुझत मूढ़ आतमा धरमा॥२१॥