भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब तो चलने के दिन आये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सब कुछ कृष...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:25, 29 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
अब तो चलने के दिन आये
सब को राम-राम करते हैं दोनों हाथ उठाये
घिरता है तूफान, न जाने किसे कहाँ ले जाये !
यही बहुत है, इतने दिन हम साथ-साथ रह पाये
नदी-नाव संयोग हुआ था, अपने थे न पराये
प्रेम-पाश में बाँध किसी ने ये सब नाच नचाये
समझे जो जिसका जी चाहे, कहे जिसे जो भाये
निंदा-स्तुति से परे आज हम, यह जग क्या भरमाये !
हों गुलाब में रँग न अब वे, गये, जहाँ से आये
पर उसकी ख़ुशबू न मिटेगी, कोई लाख मिटाये
अब तो चलने के दिन आये
सब को राम-राम करते हैं दोनों हाथ उठाये