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सारी धरती डेरा अपना
सातों सागर घर आँगन है अम्बर घेरा अपना
निज चेतन के रथ पर बैठे
जब हम शून्य गुहा में पैठे
फिरे काल फणि ऐंठे ऐंठे
लिए अँधेरा अपना
चमक उठे किरणों के धागे
ध्वनि आई 'आगे ही आगे
बढ़ता जा जितना मन माँगे
सब है तेरा अपना
जड़ परमाणु जहाँ है अक्षय
चिर चिन्मय तुझको कैसा भय
पायेगा नित नित नव द्युतिमय
रैन-बसेरा अपना'
सारी धरती डेरा अपना
सातों सागर घर आँगन है अम्बर घेरा अपना