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ख़्वाबों को रख दिया है हमने संभाल के
फुर्सत में देख लेंगे इनको निकाल के।
अपनी जरूरतों को इन में समेट ले
सिक्के जो चंद हैं ये मेरे हलाल के।
वो सुर्ख़रू सभी थे जुगनू की जात के
हम को भरम हुए थे जिन पे मशाल के।
बदले नसीब अपना कोशिश हजार की
सिक्के से तय हुई पर, किस्मत, उछाल के।
मासूम सी शिकायत अपनी भी थी मगर
ढूंढा किये, मिले ना, हिज्जे सवाल के।
पैदा करेगा कोई, खायेगा कोई और
झोली में जा गिरेंगे सिक्के दलाल के।
गिरना है एक फैशन, सबको पंसद है
बाकी है लोग फिर भी अपनी मिसाल के।