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"मधुर माधवी संध्या में / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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मधुर माधवी संध्या मे जब रागारुण रवि होता अस्त, | मधुर माधवी संध्या मे जब रागारुण रवि होता अस्त, | ||
विरल मृदल दलवाली डालों में उलझा समीर जब व्यस्त, | विरल मृदल दलवाली डालों में उलझा समीर जब व्यस्त, |
08:09, 2 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
मधुर माधवी संध्या मे जब रागारुण रवि होता अस्त,
विरल मृदल दलवाली डालों में उलझा समीर जब व्यस्त,
प्यार भरे श्मालम अम्बर में जब कोकिल की कूक अधीर
नृत्य शिथिल बिछली पड़ती है वहन कर रहा है उसे समीर
तब क्यों तू अपनी आँखों में जल भरकर उदास होता,
और चाहता इतना सूना-कोई भी न पास होता,
वंचित रे! यह किस अतीत की विकल कल्पना का परिणाम?
किसी नयन की नील दिशा में क्या कर चुका विश्राम?
क्या झंकृत हो जाते हैं उन स्मृति किरणों के टूटे तार?
सूने नभ में स्वर तरंग का फैलाकर मधु पारावार,
नक्षत्रों से जब प्रकाश की रश्मि खेलने आती हैं,
तब कमलों की-सी जब सन्ध्या क्यों उदास हो जाती है?