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"धूप कच्ची औ कुहासा बस जरा सा / अश्वनी शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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अब भी ऐसे कई जियाले हैं
 
बहुत मसरूफ फिर भी ठाले हैं
 
  
वक्त तो आदतन ही बहता हैं
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धूप कच्ची औ कुहासा बस जरा सा
एक लम्हा मगर संभाले हैं।
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आसमां का तौर ये भी अब जरा सा।
  
सूप ये देखिये तो कैसा हैं
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ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलकर
हमने अहसास कुछ उबाले हैं।
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देखता है वो जहां का दम जरा सा।
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हादसे-दर-हादसे जब पेश आये
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चल दिये थे फासले से हम जरा सा।
  
वो जो सूरज को फेंक आये हैं
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हौसलों में आसमां-दर-आसमां है
उनके हाथों में अब उजाले हैं।
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हासिलों में चाँद वो भी बस जरा सा।
  
इन मुंडेरों पे जो फुदकते हैं
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भागना औ हांफना किस्मत भले हो
ये कबूतर ही हमने पाले हैं।
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मुस्कुरायेंगे थमेंगे हम जरा सा।
  
मंज़िले तय तो की कई लेकिन
+
रौंद दो धरती, झुका दो आसमां को
हासिलों में फकत ये छाले हैं।
+
वक्त ने टेढ़ा किया मुंह गर जरा सा।
  
हमने लम्हात जी के देखे जो
+
इस सहन की शान है जो एक बरगद
वो ही सब आपके हवाले हैं।
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हो गया बूढ़ा, झुका है, बस जरा सा।
  
 
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17:02, 4 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण


धूप कच्ची औ कुहासा बस जरा सा
आसमां का तौर ये भी अब जरा सा।

ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलकर
देखता है वो जहां का दम जरा सा।

हादसे-दर-हादसे जब पेश आये
चल दिये थे फासले से हम जरा सा।

हौसलों में आसमां-दर-आसमां है
हासिलों में चाँद वो भी बस जरा सा।

भागना औ हांफना किस्मत भले हो
मुस्कुरायेंगे थमेंगे हम जरा सा।

रौंद दो धरती, झुका दो आसमां को
वक्त ने टेढ़ा किया मुंह गर जरा सा।

इस सहन की शान है जो एक बरगद
हो गया बूढ़ा, झुका है, बस जरा सा।