भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डरता हूँ कामयाबी-ए-तकदीर देखकर / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह= }} [[Category:ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर देखकर.
+
डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर१ देखकर.
यानी सितमज़रीफ़ी-ए-तकदीर देखकर.
+
यानी सितमज़रीफ़ी-ए-तकदीर२ देखकर.
 +
कालिब में३ रूह फूँक दी या ज़हर भर दिया.
 +
मैं मर गया ह्यात की४ तासीर५ देखकर.
 +
हैरां हुए न थे जो तसव्वुर में६ भी कभी.
 +
तसवीर हो गये तेरी तसवीर देखकर.
 +
ख्वाबे-अदम से७ जागते ही जी पे बन गई.
 +
ज़हराबा-ए-ह्यात८ की तासीर देखकर.
 +
ये भी हुआ है अपने तसव्वुर में होके मन्ह९.
 +
मैं रह गया हूँ आपकी तसवीर देखकर.
 +
सब मरहले ह्यात के तै करके अब 'फ़िराक'.
 +
बैठा हुआ हूँ मौत में ताखीर१० देखकर.
 +
 
 +
 
 +
 
 +
१.भाग्य की सफलता    २.भाग्य का मजाक    ३.शरीर में    ४.जीवन की    ५.गुण   
 +
६.कल्पना में    ७.अनस्तित्व से    ८.जीवन रुपी विष की    ९.मग्न    १०.विलम्ब

16:04, 21 सितम्बर 2012 का अवतरण

डरता हूँ कामियाबी-ए-तकदीर१ देखकर.
यानी सितमज़रीफ़ी-ए-तकदीर२ देखकर.
कालिब में३ रूह फूँक दी या ज़हर भर दिया.
मैं मर गया ह्यात की४ तासीर५ देखकर.
हैरां हुए न थे जो तसव्वुर में६ भी कभी.
तसवीर हो गये तेरी तसवीर देखकर.
ख्वाबे-अदम से७ जागते ही जी पे बन गई.
ज़हराबा-ए-ह्यात८ की तासीर देखकर.
ये भी हुआ है अपने तसव्वुर में होके मन्ह९.
मैं रह गया हूँ आपकी तसवीर देखकर.
सब मरहले ह्यात के तै करके अब 'फ़िराक'.
बैठा हुआ हूँ मौत में ताखीर१० देखकर.



१.भाग्य की सफलता २.भाग्य का मजाक ३.शरीर में ४.जीवन की ५.गुण
६.कल्पना में ७.अनस्तित्व से ८.जीवन रुपी विष की ९.मग्न १०.विलम्ब