"कवि का गीत / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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यह दुखों की माप मेरे ! | यह दुखों की माप मेरे ! | ||
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काम क्या समझूँ न हो यदि | काम क्या समझूँ न हो यदि | ||
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उच्छ्वास अपने तोलने को ? | उच्छ्वास अपने तोलने को ? | ||
हैं वही उच्छ्वास कल के | हैं वही उच्छ्वास कल के | ||
+ | आज सुखमय राग जग में, | ||
+ | आज मधुमय गान, कल के | ||
+ | दग्ध कंठ प्रलाप मेरे. | ||
+ | गीत कह इसको न, दुनिया, | ||
+ | यह दुखों की माप मेरे ! | ||
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+ | उच्चतम गिरि के शिखर को | ||
+ | लक्ष्य जब मैंने बनाया, | ||
+ | गर्व से उन्मत होकर | ||
+ | शीश मानव ने उठाया, | ||
+ | ध्येय पर पहुँचा, विजय के | ||
+ | नाद से संसार गूंजा, | ||
+ | खूब गूंजा किंतु कोई | ||
+ | गीत का सुन स्वर न पाया; | ||
+ | आज कण-कण से ध्वनित | ||
+ | झंकार होगी नूपुरों की, | ||
+ | खड्ग-जीवन-धार पर अब | ||
+ | है उठे पद काँप मेरे. | ||
+ | गीत कह इसको न, दुनिया, | ||
+ | यह दुखों की माप मेरे ! |
22:11, 21 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
गीत कह इसको न दुनियाँ
यह दुखों की माप मेरे !
:१:
काम क्या समझूँ न हो यदि
गाँठ उर की खोलने को ?
संग क्या समझूँ किसी का
हो न मन यदि बोलने को ?
जानता क्या क्षीण जीवन ने
उठाया भार कितना,
बाट में रखता न यदि
उच्छ्वास अपने तोलने को ?
हैं वही उच्छ्वास कल के
आज सुखमय राग जग में,
आज मधुमय गान, कल के
दग्ध कंठ प्रलाप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !
:२:
उच्चतम गिरि के शिखर को
लक्ष्य जब मैंने बनाया,
गर्व से उन्मत होकर
शीश मानव ने उठाया,
ध्येय पर पहुँचा, विजय के
नाद से संसार गूंजा,
खूब गूंजा किंतु कोई
गीत का सुन स्वर न पाया;
आज कण-कण से ध्वनित
झंकार होगी नूपुरों की,
खड्ग-जीवन-धार पर अब
है उठे पद काँप मेरे.
गीत कह इसको न, दुनिया,
यह दुखों की माप मेरे !